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Arun Pal Singh

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डुडेजा और स्कॉटी

August 18, 2021 by arunpalsingh Leave a Comment

बात एम् बी बी एस  के दिनों की है | फाइनल ईयर की परीक्षा आ रही थी | हमारे बैच के सब लोग जान लड़ा रहे थे | आख़िरकार दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षाओं में इसकी गिनती होती है|

 

एम् बी बी इस एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कोर्स है| और इस बात का एहसास आपको घुसने के चंद दिनों के बाद ही हो जाता है |

 

जाहिर है फिर स्ट्रेस तो आएगी ही|  ज्यादातर लोग इस स्ट्रेस को रोज़ झेलते हैं |  कभी कक्षा में, कभी टीचर के एकतरफा संवाद में, कभी टेस्टों में और कभी वार्षिक परीक्षाओं में |

 

मेडिसिन एक अत्यंत सुन्दर विषय है और इस बात की गवाही सब डॉक्टर्स देंगे | मगर किसी वस्तु का सुन्दर होनI इस बात की गारंटी नहीं है कि स्ट्रेस्फुल नहीं होगा |

जो भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेते हैं वो अपने अपने स्कूलों में टॉप परफॉर्मर्स होते हैं | उन्हें आदत होती है नब्बे से ऊपर प्रतिशत देखने की, लाने की | और यहाँ 5० प्रतिशत भी दूभर लगते हैं|  सिलेबस ही इतना होता है की आपको सारा याद नहीं हो सकता |  परीक्षा का स्टाइल ऐसा है कि आप चाह कर भी स्कोर नहीं कर पाते |

 

करने वाले करते भी हैं | मगर ज्यादातर लोग बस एवरेज, अबव  एवरेज और बिलो एवरेज  के बीच में रहते हैं |

 

डुडेजा उन लोगों में से था जो परीक्षा में स्कोर करता था | उसको सब कुछ पढ़ना था | सब कुछ|  हमारी तरह नहीं कि पहले ही सवाल उठा दो की ये पढ़ के कोई लाभ भी है या नहीं |

 

तो जाहिर है टुटेजा टॉप स्कोरर्स में से एक था | और स्ट्रेस से फुल्ली लोडेड रहता था |

 

ज्यादातर लोग, जैसा  कि मैंने कहा, स्ट्रेस झेलते  रहते हैं ये सोच कर कि  कि वो सुबह कभी तो आएगी |

 

कुछ हम जैसे होते हैं जिनको हम जैसे मिल जाते हैं | और उनसे मिलता है मेडिसिन से भी बड़ा ज्ञान| कि ये कोर्स तुम्हारे जीवन का हिस्सा है तुम्हारी ज़िन्दगी नहीं | पास फेल  चलता रहेगा | मगर स्ट्रेस नहीं लेना | आज का छूटा कल पढ़ा जाएगा मगर आज के छूटे का अफ़सोस करते रहोगे तो कल भी हाथ से निकल जाएगा |

 

इसलिए जो भी करो, जो भी हो, टेंशन लाद  के नहीं चलना | याद होता है आज तो ठीक, नहीं तो कल सही | वैसे भी आधे से ज्यादा चीज़ें कहीं काम नही आनी |

 

मैं हॉस्टल में रहता था | जो लोग घरों से आते थे उनको डे स्कॉलर्स कहते थे [ वैसे हॉस्टल में स्कॉलर्स नहीं थे ऐसा नहीं था |

 

मितेश डुडेजा डे स्कालर था | मगर एग्जाम में टाइम बचाने के लिए  वो हॉस्टल में रहता था |

 

चूंकि फाइनल परीक्षा थी तो छुट्टियां  थी तैयारी के लिए |

 

डुडेजा अक्सर अकेला रहता था और मैंने कभी भी उसको बिना किताब के नहीं देखा | वो ऐसा शख्स था की कभी कोई टीचर पूछ ले  या कोई सहपाठी भी तो उसको उत्तर आना चाहिए |  और अगर डुडेजा को उत्तर नहीं आता था तो वो उदासी की गर्त में डूब जाता था |

 

एग्जाम के दिनों में किताब या नोट्स बाथरूम ले कर जाता था | डुडेजा इस बात के लिए हॉस्टल में काफी मशहूर था मगर उससे कभी किसी ने इसका ज़िक्र नहीं किया| डुडेजा को भी कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी की कौन क्या सोचता है |

क्योंकि कमरे में उतना अनुशासन नहीं बन पाता  तो काफी लोग कैंपस लाइब्रेरी में पढ़ते थे रीडिंग रूम में |

 

लाइब्रेरी सुबह  8 बजे से सुबह 6 बजे तक खुलती थी | पूरे 22 घंटे | ये सुविधा इसलिए की उल्लू और लार्क दोनों अपनी दिनचर्या अनुसार पढ़ सकें |

 

मेरा लाइब्रेरी में आगमन 8 बजे सुबह होता  था और प्रस्थान 11 बजे रात |

 

डुडेजा का रूटीन उल्टा था | वह दिन में सोता था और शाम को उठकर कमरे में पढता था | डिनर के बाद वो लाइब्रेरी आ जाता था |

 

हम सब मेस में भोजन करते थे जिसकी टाइमिंग विंडो काफी संकरी थी | रात का डिनर 9.30  के बाद नहीं मिलता था|

 

अक्सर जब हम डिनर के लिए जा रहे होते थे तो डुडेजा  आ रहा होता था खाकर |   अक्सर आते जाते यूं ही  मैं पूछ लेता था उससे की क्या बना है, कैसा बना है |

यूं ही इसलिए की कोई और विक्लप तो था नहीं | जो बना था खाना तो था | एक अच्छी कैंटीन थी मगर दूर थी, महंगी भी थी | रोज़ रोज़ नहीं इतना समय और पैसा खर्चा जा सकता |

जब भी मैं पूछता डुडेजा मोहन बिसूर देता था |

 

“पीली दाल”

“काली दाल”

“राजमां है पर ऐंवें ई  हैं”

 

मेस का खाना वैसे किसी को न भाता था |  डुडेजा भी ट्रेंड फोलोअर था |

 

एक बार मैं लेट हो गया लाइब्रेरी से |  10  मिनट में मेस बंद हो जाना था |  मेरे साथ एक सीनियर बैच का लड़का रीतेश भी था | हम अक्सर इकट्ठे पढ़ते थे | वो पी जी के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर रहा था |

 

सामने तेज क़दमों से डुडेजा आता दिखा |

अचानक जाने क्यों, डुडेजा को देख कर स्कॉटी भौंकने लगा | स्कॉटी मेडिकल कॉलेज के चंद आवारा कुत्तों में से था जो कि अक्सर अपने झुण्ड से अलग विचरण करता था |

 

“डुडेजा स्कॉटी क्या बोल रहा है” मैंने हँसते हुए पूछा |

 

अक्सर डुडेजा मुस्कुरा के निकल जाता था मगर उस दिन पता नहीं क्यों भिन्ना उठा |

 

” क्यों मेरा मज़ाक उड़ा  रहे हो यार! मैं वैसे ही परेशान हूँ | एक तो तैयारी ठीक से नहीं हो रही, ऊपर से खाना अच्छा नहीं मिल रहा और तुमको जब देखो मसखरी सूझती है |

 

डुडेजा इतनी जोर से चिल्लाया की स्कॉटी चुप हो गया और उसको देखने लगा |

 

उसे गुस्से में देख मुझे फिर कुछ सूझा |

 

” देख यार कैसे एकटक देख रहा है | मिस करता है तुमको”

 

” छोड़ यार! मेरा मूड वैसे ठीक नहीं  | ” डुडेजा चला गया |

 

परीक्षा हुई और हम सब पास हो गए |  धीरे धीरे इंटर्नशिप के रूटीन में ढल गए | तीन चार महीने बीते होंगे जब रीतेश ने दरवाज़ा खटखटाया | वो अब मेडिसिन में पोस्ट ग्रेजुएट था |

 

” सोने दे न यार, रात को ड्यूटी है |”

 

” अबे ऐसी खबर लाया हूँ नींद उड़ जायेगी ”

 

“क्या”

 

“स्कॉटी कहाँ है ?”

 

” यार मुझे क्या पता | तेरे को कोई काम नहीं है आज | मेडिसिन ड्यूटी ने बावला कर दिया है?”

” तूने आखिरी बार कब देखा उसे”

 

“अबे किसे”?

“स्कॉटी “

 

देख बहुत हो गया अब मैं पीट दूंगा| तू अपनी पी जी पे ध्यान दे, स्कॉटी यहीं कहीं भौंकता मिल जाएगा, तूने पालना है?

 

रीतेश हंस पड़ा|

 

“डुडेजा  याद है ?

 

मेरी त्योरियां देख कर उसने रुख बदला |

“वो मेरे साथ पोस्टड है इंटर्न शिप के लिए | ”

 

“फिर मेरा सर क्यों खा रहा है ?”

 

“यार सुन तो ” वो इतना उत्सुक था की मैं चुप हो गया |

” हाँ बोल”

 

डुडेजा ने तेरे को थैंक्स बोला है | कह रहा था की तूने उसकी ज़िन्दगी बदल दी |

 

” तुम दोनों ने कोई नशा किया है क्या साथ ? मैंने तो  एग्जाम के बाद उसको देखा ही नहीं |

 

“याद है जब तूने उसको कहा था की स्कॉटी उसे मिस कर रहा है”

 

मैं हंस पड़ा | उस दिन हम मेस तक हँसते हुए आये थे |

 

” हाँ तो”?

उस दिन डुडेजा उस एपिसोड के बाद लाइब्रेरी के बाहर वाले पीपल नीचे कितनी देर बैठा रहा | अंदर नहीं गया | स्कॉटी भी उसके पास बैठ गया|

 

डुडेजा बहुत रोया उस दिन| काफी लोगों ने देखा भी | फिर कैंटीन गया और स्कॉटी को बिस्कुट लाकर खिलाये |

 

स्कॉटी अब वाकई उसका इंतज़ार करता | डुडेजा भी उसका ख्याल रखता | टी ब्रेक में स्कॉटी उसके साथ साथ घूमता|

dudeja-scotty man-dog

डुडेजा उसको याद किये हुए केस नोट्स भी सुनाता |

 

” केस नोट्स? स्कॉटी का पागल होना लाज़मी है , भाग गया होगा | ”  मैं हंस पड़ा|

 

” न! एग्जाम के बाद डुडेजा उसे अपने घर ले गया! ”

” हैं? क्यों? ऑपरेशन भी सिखाएगा?

 

“चुप, सुनता रह “ रीतेश काफी उतावला था

“उन दिनों डुडेजा काफी डिप्रेस्ड था | उसका कहना है की स्कॉटी का उसे काफी सहारा था | और इसके लिए तुझे थैंक्स बोल रहा था |”

 

“….” मुझे समझ नहीं आया  कि क्या बोलूं|

 

” डुडेजा ने अपने प्लानिंग भी बदल ली है | पहले उसको कार्डियक सर्जन बनना था | अब कह रहा कि पी जी  नहीं करेगा |

 

” क्यों भाई, स्कॉटी बुरा मानता है क्या?

” नहीं! डुडेजा अब स्ट्रेस में नहीं जीना चाहता| बस अपनी लिमिटेड प्रैक्टिस करेगा और खुश रहेगा |

 

इससे पहले की मैं कोई और डायलाग मारता, रीतेश ने कहा

 

“पता है उस ने  गाडी के पीछे क्या लिखा है  – “दौड़ो! मगर ख़ुशी से ”

 

मैं मुस्कुरा दिया | डुडेजा बड़ा हो गया था |

 

“आ चलें” मैंने उसको थपथपाते हुए कहा |

 

“कहाँ”

 

“अबे डुडेजा के साथ लंच किया है तो मेरे साथ चाय तो पी सकता है” |

 

पास वाले कमरे से रेडियो के आवाज़ आ रही थी | गाने के साथ गुनगुनाते हम सीढ़ियां उतरने लगे|

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