बात एम् बी बी एस के दिनों की है | फाइनल ईयर की परीक्षा आ रही थी | हमारे बैच के सब लोग जान लड़ा रहे थे | आख़िरकार दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षाओं में इसकी गिनती होती है|
एम् बी बी इस एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कोर्स है| और इस बात का एहसास आपको घुसने के चंद दिनों के बाद ही हो जाता है |
जाहिर है फिर स्ट्रेस तो आएगी ही| ज्यादातर लोग इस स्ट्रेस को रोज़ झेलते हैं | कभी कक्षा में, कभी टीचर के एकतरफा संवाद में, कभी टेस्टों में और कभी वार्षिक परीक्षाओं में |
मेडिसिन एक अत्यंत सुन्दर विषय है और इस बात की गवाही सब डॉक्टर्स देंगे | मगर किसी वस्तु का सुन्दर होनI इस बात की गारंटी नहीं है कि स्ट्रेस्फुल नहीं होगा |
जो भी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेते हैं वो अपने अपने स्कूलों में टॉप परफॉर्मर्स होते हैं | उन्हें आदत होती है नब्बे से ऊपर प्रतिशत देखने की, लाने की | और यहाँ 5० प्रतिशत भी दूभर लगते हैं| सिलेबस ही इतना होता है की आपको सारा याद नहीं हो सकता | परीक्षा का स्टाइल ऐसा है कि आप चाह कर भी स्कोर नहीं कर पाते |
करने वाले करते भी हैं | मगर ज्यादातर लोग बस एवरेज, अबव एवरेज और बिलो एवरेज के बीच में रहते हैं |
डुडेजा उन लोगों में से था जो परीक्षा में स्कोर करता था | उसको सब कुछ पढ़ना था | सब कुछ| हमारी तरह नहीं कि पहले ही सवाल उठा दो की ये पढ़ के कोई लाभ भी है या नहीं |
तो जाहिर है टुटेजा टॉप स्कोरर्स में से एक था | और स्ट्रेस से फुल्ली लोडेड रहता था |
ज्यादातर लोग, जैसा कि मैंने कहा, स्ट्रेस झेलते रहते हैं ये सोच कर कि कि वो सुबह कभी तो आएगी |
कुछ हम जैसे होते हैं जिनको हम जैसे मिल जाते हैं | और उनसे मिलता है मेडिसिन से भी बड़ा ज्ञान| कि ये कोर्स तुम्हारे जीवन का हिस्सा है तुम्हारी ज़िन्दगी नहीं | पास फेल चलता रहेगा | मगर स्ट्रेस नहीं लेना | आज का छूटा कल पढ़ा जाएगा मगर आज के छूटे का अफ़सोस करते रहोगे तो कल भी हाथ से निकल जाएगा |
इसलिए जो भी करो, जो भी हो, टेंशन लाद के नहीं चलना | याद होता है आज तो ठीक, नहीं तो कल सही | वैसे भी आधे से ज्यादा चीज़ें कहीं काम नही आनी |
मैं हॉस्टल में रहता था | जो लोग घरों से आते थे उनको डे स्कॉलर्स कहते थे [ वैसे हॉस्टल में स्कॉलर्स नहीं थे ऐसा नहीं था |
मितेश डुडेजा डे स्कालर था | मगर एग्जाम में टाइम बचाने के लिए वो हॉस्टल में रहता था |
चूंकि फाइनल परीक्षा थी तो छुट्टियां थी तैयारी के लिए |
डुडेजा अक्सर अकेला रहता था और मैंने कभी भी उसको बिना किताब के नहीं देखा | वो ऐसा शख्स था की कभी कोई टीचर पूछ ले या कोई सहपाठी भी तो उसको उत्तर आना चाहिए | और अगर डुडेजा को उत्तर नहीं आता था तो वो उदासी की गर्त में डूब जाता था |
एग्जाम के दिनों में किताब या नोट्स बाथरूम ले कर जाता था | डुडेजा इस बात के लिए हॉस्टल में काफी मशहूर था मगर उससे कभी किसी ने इसका ज़िक्र नहीं किया| डुडेजा को भी कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी की कौन क्या सोचता है |
क्योंकि कमरे में उतना अनुशासन नहीं बन पाता तो काफी लोग कैंपस लाइब्रेरी में पढ़ते थे रीडिंग रूम में |
लाइब्रेरी सुबह 8 बजे से सुबह 6 बजे तक खुलती थी | पूरे 22 घंटे | ये सुविधा इसलिए की उल्लू और लार्क दोनों अपनी दिनचर्या अनुसार पढ़ सकें |
मेरा लाइब्रेरी में आगमन 8 बजे सुबह होता था और प्रस्थान 11 बजे रात |
डुडेजा का रूटीन उल्टा था | वह दिन में सोता था और शाम को उठकर कमरे में पढता था | डिनर के बाद वो लाइब्रेरी आ जाता था |
हम सब मेस में भोजन करते थे जिसकी टाइमिंग विंडो काफी संकरी थी | रात का डिनर 9.30 के बाद नहीं मिलता था|
अक्सर जब हम डिनर के लिए जा रहे होते थे तो डुडेजा आ रहा होता था खाकर | अक्सर आते जाते यूं ही मैं पूछ लेता था उससे की क्या बना है, कैसा बना है |
यूं ही इसलिए की कोई और विक्लप तो था नहीं | जो बना था खाना तो था | एक अच्छी कैंटीन थी मगर दूर थी, महंगी भी थी | रोज़ रोज़ नहीं इतना समय और पैसा खर्चा जा सकता |
जब भी मैं पूछता डुडेजा मोहन बिसूर देता था |
“पीली दाल”
“काली दाल”
“राजमां है पर ऐंवें ई हैं”
मेस का खाना वैसे किसी को न भाता था | डुडेजा भी ट्रेंड फोलोअर था |
एक बार मैं लेट हो गया लाइब्रेरी से | 10 मिनट में मेस बंद हो जाना था | मेरे साथ एक सीनियर बैच का लड़का रीतेश भी था | हम अक्सर इकट्ठे पढ़ते थे | वो पी जी के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर रहा था |
सामने तेज क़दमों से डुडेजा आता दिखा |
अचानक जाने क्यों, डुडेजा को देख कर स्कॉटी भौंकने लगा | स्कॉटी मेडिकल कॉलेज के चंद आवारा कुत्तों में से था जो कि अक्सर अपने झुण्ड से अलग विचरण करता था |
“डुडेजा स्कॉटी क्या बोल रहा है” मैंने हँसते हुए पूछा |
अक्सर डुडेजा मुस्कुरा के निकल जाता था मगर उस दिन पता नहीं क्यों भिन्ना उठा |
” क्यों मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो यार! मैं वैसे ही परेशान हूँ | एक तो तैयारी ठीक से नहीं हो रही, ऊपर से खाना अच्छा नहीं मिल रहा और तुमको जब देखो मसखरी सूझती है |
डुडेजा इतनी जोर से चिल्लाया की स्कॉटी चुप हो गया और उसको देखने लगा |
उसे गुस्से में देख मुझे फिर कुछ सूझा |
” देख यार कैसे एकटक देख रहा है | मिस करता है तुमको”
” छोड़ यार! मेरा मूड वैसे ठीक नहीं | ” डुडेजा चला गया |
परीक्षा हुई और हम सब पास हो गए | धीरे धीरे इंटर्नशिप के रूटीन में ढल गए | तीन चार महीने बीते होंगे जब रीतेश ने दरवाज़ा खटखटाया | वो अब मेडिसिन में पोस्ट ग्रेजुएट था |
” सोने दे न यार, रात को ड्यूटी है |”
” अबे ऐसी खबर लाया हूँ नींद उड़ जायेगी ”
“क्या”
“स्कॉटी कहाँ है ?”
” यार मुझे क्या पता | तेरे को कोई काम नहीं है आज | मेडिसिन ड्यूटी ने बावला कर दिया है?”
” तूने आखिरी बार कब देखा उसे”
“अबे किसे”?
“स्कॉटी “
देख बहुत हो गया अब मैं पीट दूंगा| तू अपनी पी जी पे ध्यान दे, स्कॉटी यहीं कहीं भौंकता मिल जाएगा, तूने पालना है?
रीतेश हंस पड़ा|
“डुडेजा याद है ?
मेरी त्योरियां देख कर उसने रुख बदला |
“वो मेरे साथ पोस्टड है इंटर्न शिप के लिए | ”
“फिर मेरा सर क्यों खा रहा है ?”
“यार सुन तो ” वो इतना उत्सुक था की मैं चुप हो गया |
” हाँ बोल”
डुडेजा ने तेरे को थैंक्स बोला है | कह रहा था की तूने उसकी ज़िन्दगी बदल दी |
” तुम दोनों ने कोई नशा किया है क्या साथ ? मैंने तो एग्जाम के बाद उसको देखा ही नहीं |
“याद है जब तूने उसको कहा था की स्कॉटी उसे मिस कर रहा है”
मैं हंस पड़ा | उस दिन हम मेस तक हँसते हुए आये थे |
” हाँ तो”?
उस दिन डुडेजा उस एपिसोड के बाद लाइब्रेरी के बाहर वाले पीपल नीचे कितनी देर बैठा रहा | अंदर नहीं गया | स्कॉटी भी उसके पास बैठ गया|
डुडेजा बहुत रोया उस दिन| काफी लोगों ने देखा भी | फिर कैंटीन गया और स्कॉटी को बिस्कुट लाकर खिलाये |
स्कॉटी अब वाकई उसका इंतज़ार करता | डुडेजा भी उसका ख्याल रखता | टी ब्रेक में स्कॉटी उसके साथ साथ घूमता|
डुडेजा उसको याद किये हुए केस नोट्स भी सुनाता |
” केस नोट्स? स्कॉटी का पागल होना लाज़मी है , भाग गया होगा | ” मैं हंस पड़ा|
” न! एग्जाम के बाद डुडेजा उसे अपने घर ले गया! ”
” हैं? क्यों? ऑपरेशन भी सिखाएगा?
“चुप, सुनता रह “ रीतेश काफी उतावला था
“उन दिनों डुडेजा काफी डिप्रेस्ड था | उसका कहना है की स्कॉटी का उसे काफी सहारा था | और इसके लिए तुझे थैंक्स बोल रहा था |”
“….” मुझे समझ नहीं आया कि क्या बोलूं|
” डुडेजा ने अपने प्लानिंग भी बदल ली है | पहले उसको कार्डियक सर्जन बनना था | अब कह रहा कि पी जी नहीं करेगा |
” क्यों भाई, स्कॉटी बुरा मानता है क्या?
” नहीं! डुडेजा अब स्ट्रेस में नहीं जीना चाहता| बस अपनी लिमिटेड प्रैक्टिस करेगा और खुश रहेगा |
इससे पहले की मैं कोई और डायलाग मारता, रीतेश ने कहा
“पता है उस ने गाडी के पीछे क्या लिखा है – “दौड़ो! मगर ख़ुशी से ”
मैं मुस्कुरा दिया | डुडेजा बड़ा हो गया था |
“आ चलें” मैंने उसको थपथपाते हुए कहा |
“कहाँ”
“अबे डुडेजा के साथ लंच किया है तो मेरे साथ चाय तो पी सकता है” |
पास वाले कमरे से रेडियो के आवाज़ आ रही थी | गाने के साथ गुनगुनाते हम सीढ़ियां उतरने लगे|
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