इक ख्याल कि उठ जाऊँ
इक खींच कि बैठा रहूँ,
इसी उठक बैठक में
मैं बस कशमकश |
सोच ये भी कि दुनिया जीतनी है
नसीहत ये कि फानी है,
रेत सी है
रेत जीता भी तो मिलेगा क्या?
इसी उहा पोह में
मैं बस कशमकश|
वो कहें की खुदा तलाशो
खुदी कहे फिर मेरा क्या,
खुदी और खुदा में
मैं बस कशमकश|
कितने मसाईल हैं जो चीखते हैं
कितने वसाईल हैं जो खींचते हैं
क्या करना है
क्या छोड़ना है
बस यही है
कशमकश|
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